Monday, September 28, 2009

जिन्दगी...

कर दी जिन्दगी जिसके नाम मैने
वो मेरे प्यार को झूठा बताता है॥
जो मेरी याद में चंद आंसू भी बहा न सका

वो मुझको अपने आप से रूठा बताता है॥

आ देख तेरी याद में क्या नही सहा मैंने
थे लब खामोश और कुछ नही कहा मैंने॥
तेरी आवारगी को चुप खामोश देखता रहा यु ही
थी बेवफा तू और ख़ुद को बेवफा कहा मैंने॥

अब नही कोई बंदिशे के मौत पास है मेरे
है हर रहगुजर चुप के अब न कोई जर्रों जार मुझको॥
था बेक़सूर मैं और है जात मेरी साफ़ , के आजा
आँखे बंद नही होती , अब भी तेरा इन्तजार मुझको॥

4 comments:

  1. रचनaा अच्छी है मगर इस उम्र मे नकारात्मक अभिव्यक्ति नहीं होनी चाहिये आगे बढिये अगली बार सकारत्मक कविता लिखिये शुभकामनायें

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  2. चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. शुभकामनाएं.

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    समाज और देश के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी राय रखने के लिए व बहस में शामिल होने के लिए भाग लीजिये व लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना । लिखते रहे ।

    स्वागत है ।

    गुलमोहर का फूल

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  4. BAHUT BAHUT DHANYAWAAD, SHUKRIYA AAP LOGO KA KE AAPNE APNA KIMTI SAMAY DEKAR MERI KALAM KI SYAAHI KO PADHAA AUR SARAAHA, AAP KE VICHAR SARAHNEEY HAI... AUR SWAAGAT KE LIYE BAHUT BAHUT DHANYAWAAD...

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