Wednesday, December 9, 2009

मै न समझा मै ना जाना यु उसकी
बेवजह मुस्कराने की,
देख मुझे ताक मुझे यु बेवजह
छुप जाने की..


ये शोकिया, ये बांकपन मेरे लिये पर
किसलिए ??
थी न कोई वजह जीने की पर किस लिए
हम जी लिए ??

मन में जो था मेरे या उसके फिर क्यों नही
वो कह दिया॥
बिन कोई वजह फिर क्यों जी रहे
है हम ये दुःख लिए..

आज आलम ये है के पवन चली तो
आहट हुई॥
यु लगा के मेरे दरवाजे फिर
कोई आ गया॥

राम सच्चा, रब सच्चा, या खुदा सच्चा
है यारो।
तुम बताओ क्यों बेवजह ऐसी
मेरी हालत हुई..

आज वो जहा भी होगी खुश होगी
मेरे खुदा,
समझ मेरे आता नही, बिन उसके क्यों
न खुश मै रह सका??

प्यार में बलिदान ही सबसे बड़ी
गाथा रही...
पर वो या मै बलिदान कौन है
दे रहा..??

अब ये वजह है के बेवजह की वजह
क्यों मै खोजता??
अब वो नही इस जीवन में क्यों नही
दिल मानता॥

मन है जोगी ए "राजीव" अब तो तन जोगी
बन रहा ॥
क्या लाये थे जो खो दिया ये तो
हर कोई है जानता॥

Friday, October 16, 2009

ए खुदा आ देख तेरे स्वर्ग पे किसकी बुरी नजर लगी है,
जो इंसानियत डुबाये वो तेरा ही आदमी है॥

सच है के तेरे इन्सान ने यहाँ बड़ी तरक्की की है,
प्रकृति को सता के इसने मौत अपनी पक्की की है॥
इसका सफर जहा में अब यु ही कटता रहेगा,
जिन दो पाटो में पिसेगा वो उसकी ख़ुद की चक्की ही है॥

भयभोर हो जहा में मैया गंगा पुकारती है,
स्वर्ग से इस धारा पे लाया अब कहा वो भागीरथी है॥
अब मौन हो यहाँ पे सब कुछ वो सह रही है,
किस किस के पाप धोये यहाँ सब तो पापी ही है॥

अधर्म इस धारा पे अब कोढ़ हो रहा है,
इंसान और पापी हर और हो रहा है॥
गाँधी, नेहरू, भगत सिंह अब है बिसरी हुई सी यादें,
मेरे देश का हर नेता अब चोर हो रहा है॥

ए खुदा आ देख तेरे स्वर्ग पे किसकी बुरी नजर लगी है,
जो इंसानियत डुबाये वो तेरा ही आदमी है॥

Wednesday, October 14, 2009

इंसानियत

ए खुदा देख तेरे स्वर्ग पे किसकी बुरी नजर लगी है,
जो इंसानियत डुबाये वो तेरा ही आदमी है॥

Friday, October 9, 2009

यु चला तूफ़ान मेरी जिंदगी की तह तक...

एक साया सा बनके वो मेरी जिन्दगी में आया,
समझा न उसको जाना फिर भी दिल से लगाया॥
चाहते, शरारते प्यार और तवज्जो,
क्या न दिया उसको और क्या क्या न पाया॥

स्कूल के बाद वो छुप छुप के उससे मिलना,
कभी मैंने क्लास मिस की कभी उसने करवाया॥
वो प्यार था के कश्म कश अब सोचता हू मै,
ना वो ही समझ पायी न मई ही समझ पाया॥

वो देर रात तक छत से उसको ताकना,
क्यों खिड़की पे उसके बाप ने काला शीशा लगवाया॥
यु छोटी छोटी बात पे उसका छत पे आ जाना,
क्या वक्त था के धूप में भी कुछ अलग मजा आया॥

वो नौ दिनों तक उसका मेरे लिए भूखे रहना,
क्या बात थी, वो चाहती मैं अब तक न समझ पाया॥
वो देखती मुस्काती, हमसे नजरे भी चुराती थी,
उसकी हर एक बात हर अदा को हमने भी दिल से लगाया॥

था नासमझ मैं या नादान थी वो,
क्यों दिल की बातो को उसने सिर्फ़ इशारों से बताया॥
ना अब वो है ना कोई शक्शियत उसकी,
था तनहा तब भी और अब भी ख़ुद को तनहा पाया॥

यु चला तूफ़ान मेरी जिंदगी की तह तक,
जैसे पंछी के घोसले का पेड़ हो कटवाया॥
हां प्यार था मुझको वो जिंदगी मेरी,
कभी देख मुझे फुरसत में मैं अब तक न संभल पाया॥

Monday, September 28, 2009

जिन्दगी...

कर दी जिन्दगी जिसके नाम मैने
वो मेरे प्यार को झूठा बताता है॥
जो मेरी याद में चंद आंसू भी बहा न सका

वो मुझको अपने आप से रूठा बताता है॥

आ देख तेरी याद में क्या नही सहा मैंने
थे लब खामोश और कुछ नही कहा मैंने॥
तेरी आवारगी को चुप खामोश देखता रहा यु ही
थी बेवफा तू और ख़ुद को बेवफा कहा मैंने॥

अब नही कोई बंदिशे के मौत पास है मेरे
है हर रहगुजर चुप के अब न कोई जर्रों जार मुझको॥
था बेक़सूर मैं और है जात मेरी साफ़ , के आजा
आँखे बंद नही होती , अब भी तेरा इन्तजार मुझको॥

Friday, September 25, 2009

वादा...

हां कुछ दर्द तो है के बिछड़ गया है वो
जिसने साथ मेरा निभाने का वादा किया है॥
मै इक उम्र से बैठा हु उसी मोड़ पर
जहाँ उस बेवफा ने आने का वादा किया है॥

मै जिसे अब तक समझता रहा अपना
उसी ने पीठ पे खंजर घोंपने का वादा किया है॥
जिस आईने के सामने बैठ सवारा उसको
उस आईने ने भी टूट जाने का वादा किया है॥

अब क्या जख्म खाऊंगा मै इस दुनिया से
क्या अपनों ने ही जख्म न हमें ज्यादा दिया है??
अब क्या फिक्र करू मै अपनी इस फकत जहाँ में
जब तकदीर ने भी रूठ जाने का वादा किया है॥

Thursday, September 24, 2009

उम्र..

ए यार तेरी बात में न वो दम था
जो तू कह गया शायद वो बहुत कम था॥

के उम्र देखो तो बहुत है जिंदगी खुल के जीयो
के कल के संकट में आज को न बरबाद करो॥
जिंदगी शम्मा लिए तेरे डर पे खड़ी होगी सही
जो भूखे सो गए आज जाके उनसे भी बात करो॥

और जिद ना कर ऐसी के तू युही टूट जाएगा
और उनके बिन जीने का मजा भला कहा आएगा॥
और अगर चाहने से ज़माना यु बदल जाता
तो आज राँझा का हीर और शिरीन का फरहाद होता॥

Wednesday, September 23, 2009

कारवां...

कारवां यु बन जाएगा मंजिले अपनी बनाते चलो
जो पसंद हो रहगुजर तो हमसफ़र तुम बनाते चलो॥
के जिंदगी हरजाई है कट जाएगा जालिम ये समय
वक्त कम है ए दोस्त गम ऐ दिल अपना सुनाते चलो॥

कुछ तो कम होगा तेरा दर्द ऐ दिल ए हमसफ़र
कुछ मैं सुनु और कुछ तुम बताते चलो॥
के जिंदगी शफ्फाक है ये न तेरी है न मेरी है
जो कुछ वक्त मिल गया खुशिया उसी में लुटाते चलो॥

मत रो चुप दीवारों के सामने ये कहा तुझे सुन पाएंगी
के आज भी है तेरा तसव्वुर मेरे आईने के सामने॥
मै कौन और क्या हु जो तुझे कुछ दे पाऊंगा
मेरे दिल की आग में अपने गमो को जलाते चलो॥



कारवां

कारवां यू बन जाएगा मंजिले अपनी बनाते चलो

जो पसंद हो रहगुजर तो हमसफ़र तुम यु बनते चलो...

के जिंदगी हरजाई है कट जाएगा जालिम ये समय...

वक्त कम है ए दोस्त गम ऐ दिल अपना सुनाते चलो..

Monday, September 21, 2009

दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ मैं...

दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किये जा रहा हूँ मैं
दुनिया-ए-दिल तबाह किये जा रहा हूँ मैं
सर्फ़-ए-निगाह-ओ-आह किये जा रहा हूँ मैं
फ़र्द-ए-अमल सियाह किये जा रहा हूँ मैं
रहमत को बेपनाह किये जा रहा हूँ मैं
ऐसी भी इक निगाह किये जा रहा हूँ मैं
ज़र्रों को मेहर-ओ-माह किये जा रहा हूँ मैं
मुझ से लगे हैं इश्क़ की अज़मत को चार चाँद
ख़ुद हुस्न को गवाह किये जा रहा हूँ मैं
मासूम-ए-जमाल को भी जिस पे रश्क हो
ऐसे भी कुछ गुनाह किये जा रहा हूँ मैं
आगे क़दम बढ़ायें जिन्हें सूझता नहीं
रौशन चिराग़-ए-राह किये जा रहा हूँ मैं
तनक़ीद-ए-हुस्न मस्लहत-ए-ख़ास-ए-इश्क़ है
ये जुर्म गाह-गाह किये जा रहा हूँ मैं
गुलशनपरस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़
काँटों से भी निभाह किये जा रहा हूँ मैं
यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं


जिसने भी लिखी है बहुत अच्छी है .....